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उड़द की खेती: संपूर्ण मार्गदर्शिका

परिचय

उड़द (Vigna mungo) एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जिसे काली दाल भी कहा जाता है। यह प्रोटीन से भरपूर होती है और भारतीय खाने में विशेष स्थान रखती है। उड़द की खेती मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में की जाती है। यह फसल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक होती है, क्योंकि यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर करती है।

उड़द की खेती

Table of Contents

  • जलवायु और मिट्टी
  • प्रजातियाँ
  • बुवाई का समय और विधि
  • बीजोपचार
  • खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
  • सिंचाई प्रबंधन
  • रोग एवं कीट प्रबंधन
  • फसल कटाई और उपज
  • भंडारण एवं विपणन
  • निष्कर्ष

इस लेख में हम उड़द की खेती से जुड़ी पूरी जानकारी, जैसे जलवायु, भूमि, बीज उपचार, बुवाई, उर्वरक, सिंचाई, निराई-गुड़ाई, कटाई और भंडारण के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

जलवायु और मिट्टी

जलवायु

  • उड़द गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह विकसित होती है।
  • इसे 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
  • अधिक ठंड या अत्यधिक गर्मी से उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • इसे 600-800 मिमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।

मिट्टी

  • यह फसल दोमट, बलुई दोमट और काली मिट्टी में अच्छी तरह बढ़ती है।
  • मिट्टी का पीएच स्तर 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
  • जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि जलभराव से जड़ गलन की समस्या हो सकती है।

प्रजातियाँ

उड़द की विभिन्न प्रजातियाँ होती हैं, जिनमें कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:

  1. टी-9 – जल्दी पकने वाली किस्म (65-70 दिन)
  2. पंत यू-30 – अधिक उत्पादन वाली किस्म
  3. शेखर-2 – रोग प्रतिरोधी किस्म
  4. PU-31 – सूखा सहिष्णु और जल्दी पकने वाली किस्म
  5. आदित्य (U-19) – उत्तरी भारत के लिए उपयुक्त

बुवाई का समय और विधि

बुवाई का समय

  • खरीफ मौसम: जून-जुलाई (मानसून की शुरुआत में)
  • रबी मौसम: अक्टूबर-नवंबर (जहाँ सिंचाई की सुविधा हो)
  • ग्रीष्मकालीन फसल: फरवरी-मार्च

बुवाई की विधि

  • छिड़काव विधि: छोटे किसानों द्वारा अपनाई जाती है।
  • कतार विधि: मशीन द्वारा बुवाई की जाती है, जिससे बीजों का सही वितरण होता है।
  • बीज की गहराई: 3-4 सेमी गहरी बुवाई करें।
  • बीज दर: प्रति हेक्टेयर 20-25 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • पंक्ति से पंक्ति की दूरी: 30-40 सेमी
  • पौधे से पौधे की दूरी: 10-15 सेमी

बीजोपचार

बीज को फफूंदनाशक और जैविक उपचार से सुरक्षित करना आवश्यक है।

  • राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने पर नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद मिलती है।
  • 2 ग्राम थायरम या कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज पर लगाकर उपचार करें।
  • ट्राइकोडर्मा विरिडी का उपयोग फंगल संक्रमण से बचाव के लिए करें।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

उड़द की खेती के लिए जैविक और रासायनिक खाद दोनों का उचित उपयोग करना आवश्यक है।

  • नत्रजन (N) – 20-25 किग्रा/हेक्टेयर
  • फास्फोरस (P) – 40-50 किग्रा/हेक्टेयर
  • पोटाश (K) – 20 किग्रा/हेक्टेयर
  • जैविक खाद: 8-10 टन गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करें।
  • गंधक (S) – 20 किग्रा/हेक्टेयर से दाने की गुणवत्ता में सुधार होता है।

सिंचाई प्रबंधन

  • खरीफ फसल को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • रबी और ग्रीष्मकालीन फसल में 2-3 सिंचाइयों की जरूरत होती है।
  • फूल आने और फली बनने के समय नमी जरूरी होती है।
  • ड्रिप सिंचाई पद्धति से जल की बचत होती है।

रोग एवं कीट प्रबंधन

मुख्य रोग

  1. जड़ गलन – ट्राइकोडर्मा विरिडी या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में छिड़काव करें।
  2. चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू) – सल्फर डस्ट या कवकनाशी का छिड़काव करें।
  3. भूरी चित्ती रोग – मैंकोजेब या क्लोरोथैलोनिल का छिड़काव करें।

मुख्य कीट

  1. चने की इल्ली – नीम तेल (5%) या बैवेरिया बैसियाना जैविक कीटनाशक का छिड़काव करें।
  2. सफेद मक्खी – इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL का छिड़काव करें।
  3. थ्रिप्स और माहू – डाइमिथोएट 30% EC का प्रयोग करें।

फसल कटाई और उपज

  • उड़द की कटाई तब करें जब 80% फलियां पक जाएं।
  • कटाई के बाद फली को धूप में सुखाकर थ्रेसिंग करें।
  • औसत उपज: 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर (संकर प्रजातियों में 15 क्विंटल/हेक्टेयर तक)

भंडारण एवं विपणन

  • बीजों को अच्छी तरह सुखाकर 8-10% नमी स्तर पर संग्रहित करें।
  • भंडारण के लिए नीम की पत्तियों या कीटनाशक गोलियों का उपयोग करें।
  • उड़द की मांग बाजार में अधिक होने के कारण किसान इसे मंडी या एफपीओ (FPO) के माध्यम से अच्छे दाम पर बेच सकते हैं।

निष्कर्ष

उड़द की खेती कम लागत में अधिक लाभ देने वाली फसल है। जैविक विधियों को अपनाने से उत्पादन लागत कम होती है और पर्यावरण की सुरक्षा भी होती है। सही तकनीकों का उपयोग करके किसान अपनी उपज को बढ़ा सकते हैं और बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।


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